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 WORLD STUDENT DAY


The day 15th October marks the birth anniversary of Dr. APJ Abdul Kalam, the one who gave uttermost importance to students and encouraged them at every event. He had several brilliant advice for students like "The two most important life goals I would like every youth to have: 1. increase the amount of time that you have at your disposal; 2. increase what you can achieve in the time available."

Also, the United Nations Organization (UNO) in 2010 declared this day as World Students’ Day to honour Dr. Kalam efforts on promoting education. India fondly remembers Dr. Kalam as Missle Man, an educationalist, the person behind the success of the Indian aerospace science programme.

This year, the auspicious day will be celebrated with the theme "Learning for People, Planet, Prosperity, and Peace". It reaffirms the role of education as a fundamental right for the public good. It also enables the UN 2030 Agenda for Sustainable Development.

Dr. Kalam was the 11th president of India and he was one of the most loved presidents of the nation. He served the nation from the year 2002 to 2007. 

Dr. Kalam passed away while delivering a lecture to the students at IIM Shilong on July 27, 2015 following a massive cardiac arrest.

While the most loved president is long gone, here looking at few inspirational quotes by Dr. APJ Abdul Kalam:

 हिंदी पखवाड़ा के अवसर पर हिंदी लेखक की जीवनी का एक वेकलेट संग्रह देखें और आनंद लें


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K.V. SECTOR-8 ROHINI

 CELEBRATES 

75th INDEPENDENCE DAY

 National Librarian's Day 


12 August 1892 – 27 September 1972

Shiyali Ramamrita Ranganathan was a librarian and mathematician from India. His most notable contributions to the field were his five laws of library science and the development of the first major faceted classification system, the colon classification. He is considered to be the father of library science, documentation, and information science in India and is widely known throughout the rest of the world for his fundamental thinking in the field. His birthday is observed every year as the National Librarian Day in India


Mathematician and librarian par-excellence, Shiyali Ramamrita Ranganathan or S.R. Ranganathan passed away on this day, September 27, in the year 1972.


Listed below are some facts on the S.R. Ranganathan  that you must know:


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मुंशी प्रेमचंद के बारे मे जाने

मुंशी प्रेमचंद जी की 141वीं जयंती समारोह



जीवन परिचय

'मुंशी प्रेमचंद' का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ‘धनपत राय’ था। प्रेमचंद उनका साहित्यिक नाम था और बहुत वर्षों बाद उन्होंने यह नाम अपनाया था। उनके पिता, मुंशी अजायब लाल, डाकमुंशी थे। उनकी माता आनन्दी देवी सुन्दर, सुशील और घरेलू महिला थीं।


प्रेमचंद का बचपन आर्थिक तंगी में गुजरा। गरीबी से लड़ते हुए उन्होंने जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया। एक स्थानीय विद्यालय में अध्यापक के पद पर नौकरी के साथ साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, पर्सियन और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की। 8 अक्टूबर, 1936 को उनका देहावसान हुआ।


प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। वे भारतीय जीवन के जीवंत क़लमकार के रूप में हुए हैं।


प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की, किन्तु प्रमुख रूप से वह कथाकार हैं। उन्हें अपने जीवन काल में ही 'उपन्यास सम्राट' की पदवी मिल गई थी। 'पंच परमेश्वर', 'बड़े भाई साहब', 'नमक का दारोगा', 'कफ़न', 'परीक्षा', 'शतरंज के खिलाड़ी', 'मंत्र', 'पूस की रात' आदि प्रेमचंद की उन 300 कहानियों में से प्रसिद्ध कहानियाँ हैं जो उन्होंने लगभग 24 संग्रहों में प्रकाशित की हैं। कहानियों के अलावा प्रेमचंद ने 'निर्मला', 'प्रेमाश्रम', 'कर्मभूमि', 'गबन', 'सेवासदन', 'रंगभूमि', 'गोदान' आदि उपन्यास भी लिखे। 

 

प्रेमचंद एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, जिम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएं नहीं थीं फिर भी इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ। प्रेमचंद के साहित्य पर इस देश में और बाहर भी शोध कार्य हुए हैं। इसलिए न केवल हिंदी साहित्य में बल्कि विश्व साहित्य में प्रेमचंद का विशेष स्थान है। महान साहित्यकार व आधुनिक हिंदी के पितामह के रूप में मुंशी प्रेमचंद को सदैव याद किया जायेगा।